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Saturday, 29 September 2018

दिल्ली है रामराज, पी.एम. राम हो गये

कुछ हो गये रहीम तो कुछ राम हो गये
कुछ दोनों को मिला के आशाराम हो गये

सरकार की तरफ से ये फरमान आ गया
दिल्ली है रामराज, पी.एम. राम हो गये

सियासत की जंग में जब मोहरा ही धर्म हो
तो क्या गज़ब कि हर तरफ कोहराम हो गये

बहनों की सुरक्षा को अब दिन नहीं हैं दूर
ले नारी रूप पैदा परशुराम हो गये

हालत वतन की आज, ऐसी है 'सारथी'
अल्लाह कहो या राम बस हराम हो गये 

Thursday, 18 January 2018

मैंने तो इश्क़ भी करी है इबादत की तरह

तेरी यादों में दिन-ब-दिन सँवर गया हूँ मैं
ये न पूछो कि हूँ ज़िंदा या मर गया हूँ मैं

गो कि हर सुबह मैं खुद को समेट जगता हूँ
शाम आते ही क्यों लगता बिख़र गया हूँ मैं

अब तो आवाज़ भी तेरी मुझे नहीं सुनती
तेरी मंज़िल से भी आगे गुज़र गया हूँ मैं

मैंने तो इश्क़ भी करी है इबादत की तरह
ये न कहना कि वफ़ा से मुकर गया हूँ मैं

जो कभी 'सारथी' के दिल में बसे होते थे
देख साया भी उनका अब तो डर गया हूँ मैं


Sunday, 14 January 2018

बचपन

बहुत याद आती है आज ,
बचपन का हर एक अंदाज ,
नहीं किसी से कोइ परदा ,
नहीं किसी से कोइ राज ।

खो जाना बस खेल मगन हो ,
अद्भुत था बचपन का साज ,
कभी झगड.ता था आपस में,
फिर भी है उस दिन पे नाज ।

दोपहर की भरी धूप में ,
अरमानोँ को दे परवाज ,
दौड. भाग जाना वो घर से ,
माँ देती रहती आवाज ।

यौवन कुचल गया बचपन को ,
चुरा गया खुशियोँ का राज ,
आवाजाही बनी जिँदगी ,
गिरा गई खुशियोँ पे गाज ।

याद करुं जब भी बचपन को ,
आँखे भर आती है आज ,
छोड. जवानी फिर से हमको ,
पहना दे बचपन का ताज ।

Tuesday, 23 August 2016

दिल में खंज़र न चुभाना की तेरा नाम भी है

हो रही सुबहा कहीं पर तो कहीं शाम भी है
इतनी थोड़ी सी पिलायेगा या इंतेज़ाम भी है

अपनी यादो से कहो और न सताए हमें
काम करने दो हमें और बहुत काम भी है

ज़ख्म दे दो जो कही पे तो शिकायत न करुं
दिल में खंज़र न चुभाना की तेरा नाम भी है

अब तो बातें न बना और हमें इतना बता
सिर्फ साकी है यहाँ पर या कोई ज़ाम भी है

वक़्त बेवक़्त मुझे यूँ ही बुलाया न करो
सारथी के तो बहुत से यहाँ निज़ाम भी है 

Wednesday, 30 September 2015

इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

अब तो रुखसार पे उनके नक़ाब सा क्यों है
इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

वो जो बस बेवफ़ा की ज़ात से थे
ज़िन्दगी उनके बिन लगे ख़राब सा क्यों है

जिनको चाहे तमाम उम्र कटी
अब वो यादों से भी जायेंगे ख़्वाब सा क्यों है

उसने गलती नहीं गुनाह किया
फिर भी आँखों में जो देखा जबाब सा क्यों है

इश्क़ की खोखली निधि जो हुये
'सारथी' चेहरे पे उनके रुआब सा क्यों है 




Monday, 3 August 2015

'सारथी' आज तेरे नाम से बदनाम हो जाये

इश्क़ जब पार करे हद तो वो नाकाम हो जाये
जो न गुज़रे हदों को तो क्यों ये गुमनाम हो जाये

इश्क़ मिलता नही किसी को है हकीकत ऐसी
सच्चा आशिक़ जो मिले, पाने को नीलाम हो जाये

जिनकी यादों में कही पर भी दिल नहीं लगता
उनकी यादों में आज फिर से एक जाम हो जाये

वफ़ा की राह में ठोकर के सिवा कुछ भी नही
इसमें जो भटके वो हर काम से बेकाम हो जाये

अबतलक तुमको छुपाया था निधि माने हुये
'सारथी' आज तेरे नाम से बदनाम हो जाये 

Friday, 31 July 2015

'सारथी' आश लिए जीते रहे

हँस के हर दर्द को यूँ सहते रहे
मोम की तरह से पिघलते रहे

खाए ठोकर ज़माने में कितने
वफ़ा में दर्द बहुत कहते रहे

था जिसे ग़म नही कभी कोइ
ग़म के आंसू भी आज पिते रहे

वो जो खुलकर मिले थे हमसे कभी
क्यों ज़माने आज डरते रहे

थे किसी की निधि वो कभी समझे
'सारथी' आश लिए जीते रहे 

मौसम के साथ इंसा की औकात देख ली

जो भी कही उन्होंने हर बात देख ली
मौसम के साथ इंसा की औकात देख ली

उनके किये हुए हर वादे खोखले थे
वादे वफ़ा के और वो मुलाक़ात देख ली

जिनको गवाँरा न था चलना बगैर मेरे
किस्मत वो अपना घेरो के साथ देख ली

जिनको पसंद नही था चेहरा बुझा हुआ भी
आंसू के वो हमारे बरसात देख ली

कल तक निधि कहा था फिर मौन आज क्यों है
मानो की सारथी ने तिलिस्मात देख ली

'सारथी' फिर क्यों कहे ये सब किताबी है

उनके आने भर से ये मौसम गुलाबी है
हर अदा उनकी लगे जैसे नवाबी है

उनका आना और जाना आँशुओँ में बोर दे
और वो समझे की आँखों में खराबी है

हमने उनको खत लिखा और उन तलक पंहुचा भी वो
और वो समझे नही की ये जबाबी है

उनका चेहरा ही दिखे हर ज़ाम को पीने के बाद
सब समझते है की ये आशिक़ शराबी है

ढाई आखर प्रेम के उनको निधि बस मानिये
'सारथी' फिर क्यों कहे ये सब किताबी है



'सारथी' से जो इश्क़ बेशुमार करता था

वो शख्स हमपे बड़ा ऐतबार करता था
मेरी हर इक अदा पे दिल निशार करता था

जिसकी हर बात हमपे पहले असर होती रही
जब भी मिलता था हमें प्यार - प्यार करता था

ज़रा भी रूठें तो वो झट से मना लेना हमें
मनो वो रूठने का इंतज़ार करता था

ये बात और ज़माना हमें दोषी माने
इश्क़ हमसे तो वो दिवाना - वार करता था

क्यों न उसको निधि अभी भी कहे
'सारथी' से जो इश्क़ बेशुमार करता था 

ये ज़माना भी 'सारथी' सा दिवाना देखे

कल तलक था जो हमसफ़र तो कोइ न देखे
अब वही है जो सितमग़र तो ज़माना देखे

हमारे बीच था करार अब नही दिखता
ज़माना बस मेरा आंसू में नहाना देखे

अब तो गिरगिट भी उसका नाम सुने शरमाये
निकल के हमसे कही और सामना देखे

कैसे कैसे थे बहाने वो बिछड़ने के लिये
कि बहाना भी सोचे कितना बहाना देखे

बेवफाई में भी जो इश्क़ को निधि माने
ये ज़माना भी 'सारथी' सा दिवाना देखे 

'सारथी' हाथ अब मले जितने

आपसे दूर हो हिले जितने
आपके साथ थे चले जितने

अब वफ़ा से यकीं उठ सा गया
इस वफ़ा ने हमें छले जितने

पास जो आपके थे तो ठहरे नही
आपसे दूर हो हिले जितने

इतना सिगरेट न जला पाये
याद आने से दिल जले जितने

थी न उसकी निधि न उसको मिले
'सारथी' हाथ अब मले जितने 

Thursday, 30 July 2015

हँसते - हँसते हमें अलविदा कह गये

वो हमारे हर इक हक़ अदा कर गये
अपने दिल से भी हमको जुदा कर गये

हो सके वो हमें भूल जाये मग़र
उनकी यादें हमें गुदगुदा कर गये

उनको आंसू हमारे दिखे भी नही
हँसते - हँसते हमें अलविदा कह गये

दिल लगाया किसी से किसी के हुये
दो दिलो को तो वो ग़मज़दा कर गये

ज़िन्दगी की निधि हो समर्पित उन्हें
'सारथी' को ख़ुदा से जुदा कर गये 

सारथी की विकलता है चाँद

आज भी दिन ढले जब निकलता है चाँद 
आपको देखे न तो सिसकता है चाँद 

आपने है पुकारा यही सोचकर 
चलते - चलते लगे की ठिठकता है चाँद 

आप आये घड़ी दो घड़ी ही सही 
दिल में आशा लगाये निखरता है चाँद 

आप रो देंगे उसको दुखी देखकर 
बस यही सोचकर मुस्कराता है चाँद 

उसकी सारी निधि आप पर ही ख़तम 
सारथी, सारथी की विकलता है चाँद 

यादों में 'सारथी' अब शाम न करे

कोई इश्क़ को जहां में बदनाम न करे
करना है इश्क़ तो फिर नाकाम न करे

राहे बहुत कठिन है चलना संभल - संभल के
ये इश्क़ अब किसी को बेकाम न करे

रूक जाये ठहरे देखे समझ कर कदम रखें
हिम्मत न जिगर मई तो ये काम न करे

उठ जाये न यकीं ज़माने का इश्क़ से
किस्सा - ए - बेवफाई सरेआम न करे

माना जिसे निधि था वो पाला बदल लिये
यादों में 'सारथी' अब शाम न करे

Wednesday, 29 July 2015

'सारथी' के बगैर ग़र संभल सको तो चलो

वफ़ा की राह कठिन है जो चल सको तो चलो 
तमन्ना मौत की पाले मचल सको तो चलो 

दिलो को तोड़ने वाले है ज़माने में बहुत 
ऐसे दुश्मन की नज़र से निकल सको तो चलो 

बेवफाई के है खतरे कदम - कदम पे यहाँ 
अपनी रहो को अगर तुम बदल सको तो चलो 

झूठे वादों से भरी एक फरेब की नगरी 
इन्ही वादों के बदौलत बहाल सको तो चलो

कभी न मानो किसी को अपने जीवन की निधि 
'सारथी' के बगैर ग़र संभल सको तो चलो 

खुद को खुद से कभी जुदा न करे

खुद को खुद से कभी जुदा न करे 
इश्क़ करके ख़ुदा - ख़ुदा न करे 

गो की वो इश्क़ काम फ़रेब ही था 
हँसते - हँसते कोई विदा न करे 

इश्क़ मई आँशु है क़ुबूल हमें 
इश्क़ समझे वो ये ख़ुदा न करे

उनसे बस इतना ही तो माँगा था 
दिल किसी और पर फ़िदा न करे 

थे कभी जो किसी जीवन की निधि 
सारथी को वो अलविदा न करे 

'सारथी' मौसम बदलते ही बदल जाते है वो

जो हमेँ थी नापसंद वो काम अब करते है वो 
हर घड़ी हर बात पे अब दिल दुखा जाते है वो

वादा तो इस उम्र का था जो निभा सकते नही
वो मेरी थी और रहेँगी कह के भरमाते है वो

बेवफ़ाई वो करेँगे ये कभी सोचा न था
ज़िक्र मेरा करने मेँ भी अब तो शरमाते है वो

कल तलक दुख मेँ मेरे घबरा के रो देते थे जो
कोई रोये फ़र्क क्या अब हँस के बतियाते है वो

जो निधि मेरे थे अबतक बात से वो छल गये
'सारथी' मौसम बदलते ही बदल जाते है वो

ज़िँदगी जिनके बिन अधूरी है

साथ मिलता रहे ज़रूरी है
ज़िँदगी जिनके बिन अधूरी है

हँस के कह देँ कि भूल जाना हमेँ
ज़िसको समझेँ वो मेरी धूरी है

आ भी जायेँ कि फ़िर से साँस चले
संग जिनके ये साँस पूरी है

जिसका दिल नाम से धड़कता था
उसके दिल से ये कैसी दूरी है

पास जितना समेट लेँ वो निधि
'सारथी' के बिना अधूरी है

रुख हवा देखकर अक़सर बदल जाते है लोग

रुख हवा देखकर अक़सर बदल जाते है लोग
कल तलक मिलते थे दिल से आज कतराते है लोग

अपनोँ से मिलती ख़ुशी ये लोग कहते सभी
अपनोँ से क़तरा के फ़िर क्योँ ग़ैर अपनाते है लोग

ज़िँदगी की राह जो है काँटोँ से मिलकर बनी
काँटोँ पर चलने से फिर क्योँ इतना घबराते है लोग

बेवफ़ाई ख़ुद मेँ हो और दूजे को ईल्ज़ाम देँ
ख़ुद की भी अग़्नि-परीक्षा क्योँ न करवाते है लोग

जो निधि हो ग़ैर की तो आपको फ़िर क्योँ मिले
सारथी इतना सा फ़िर क्योँ न समझ पाते है लोग