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Sunday, 14 January 2018

बचपन

बहुत याद आती है आज ,
बचपन का हर एक अंदाज ,
नहीं किसी से कोइ परदा ,
नहीं किसी से कोइ राज ।

खो जाना बस खेल मगन हो ,
अद्भुत था बचपन का साज ,
कभी झगड.ता था आपस में,
फिर भी है उस दिन पे नाज ।

दोपहर की भरी धूप में ,
अरमानोँ को दे परवाज ,
दौड. भाग जाना वो घर से ,
माँ देती रहती आवाज ।

यौवन कुचल गया बचपन को ,
चुरा गया खुशियोँ का राज ,
आवाजाही बनी जिँदगी ,
गिरा गई खुशियोँ पे गाज ।

याद करुं जब भी बचपन को ,
आँखे भर आती है आज ,
छोड. जवानी फिर से हमको ,
पहना दे बचपन का ताज ।

1 comment:

  1. बचपन की यादें हमेशा दिल को भाती हैं ... वापस बुलाती है ...
    भावपूर्ण रचना ...

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