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Thursday, 18 January 2018

मैंने तो इश्क़ भी करी है इबादत की तरह

तेरी यादों में दिन-ब-दिन सँवर गया हूँ मैं
ये न पूछो कि हूँ ज़िंदा या मर गया हूँ मैं

गो कि हर सुबह मैं खुद को समेट जगता हूँ
शाम आते ही क्यों लगता बिख़र गया हूँ मैं

अब तो आवाज़ भी तेरी मुझे नहीं सुनती
तेरी मंज़िल से भी आगे गुज़र गया हूँ मैं

मैंने तो इश्क़ भी करी है इबादत की तरह
ये न कहना कि वफ़ा से मुकर गया हूँ मैं

जो कभी 'सारथी' के दिल में बसे होते थे
देख साया भी उनका अब तो डर गया हूँ मैं


Sunday, 14 January 2018

बचपन

बहुत याद आती है आज ,
बचपन का हर एक अंदाज ,
नहीं किसी से कोइ परदा ,
नहीं किसी से कोइ राज ।

खो जाना बस खेल मगन हो ,
अद्भुत था बचपन का साज ,
कभी झगड.ता था आपस में,
फिर भी है उस दिन पे नाज ।

दोपहर की भरी धूप में ,
अरमानोँ को दे परवाज ,
दौड. भाग जाना वो घर से ,
माँ देती रहती आवाज ।

यौवन कुचल गया बचपन को ,
चुरा गया खुशियोँ का राज ,
आवाजाही बनी जिँदगी ,
गिरा गई खुशियोँ पे गाज ।

याद करुं जब भी बचपन को ,
आँखे भर आती है आज ,
छोड. जवानी फिर से हमको ,
पहना दे बचपन का ताज ।

मेरी आदत है कि उलटी दिशा में बहने दो

तुमसे जो याद मिला है वो याद रहने दो
जो मिला दर्द भरोसे में अब तो सहने दो

ज़िंदगी की जो हकीकत है वो पता है हमें
है ज़माना जो हकीकत के बाद कहने दो

मैं कभी मुरदा मछलियों सा जी नहीं सकता
मेरी आदत है कि उलटी दिशा में बहने दो

तुम मोहब्बत भी सियासत की तरह करते हो
बीच इनके जो है दीवार अब तो ढहने दो

'सारथी' सबको खुश कभी तू कर नहीं सकते
बात जो मह रहे दही-सी उनको महने दो