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Sunday, 20 March 2016

चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है

शाम इतना भी अब हमें नही लुभाती है 
याद उनकी न जाये तो ये मुस्कराती है 

उनको भूलें भी तो कैसे समझ नही पाता 
वो राहें साथ चले जिनपे वो बुलाती है 

कितनी रातों से न सोये है ये भी याद नही 
उनकी यादें तो अब फ़क़त हमें रुलाती है 

दिन के तपते हुए सूरज की बात कौन करे 
चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है  

अर्ज़ इतनी सी थी रहना हमेशा साथ मेरे 
'सारथी' को वो ज़िंदगी से क्यों मिटाती है 

Wednesday, 30 September 2015

इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

अब तो रुखसार पे उनके नक़ाब सा क्यों है
इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

वो जो बस बेवफ़ा की ज़ात से थे
ज़िन्दगी उनके बिन लगे ख़राब सा क्यों है

जिनको चाहे तमाम उम्र कटी
अब वो यादों से भी जायेंगे ख़्वाब सा क्यों है

उसने गलती नहीं गुनाह किया
फिर भी आँखों में जो देखा जबाब सा क्यों है

इश्क़ की खोखली निधि जो हुये
'सारथी' चेहरे पे उनके रुआब सा क्यों है 




Tuesday, 11 August 2015

रूख हवा का देखकर अक़सर बदल जाते है लोग

रूख हवा का देखकर अक़सर बदल जाते है लोग
कलतलक मिलते थे दिल से आज कतराते है लोग

अपनों से मिलती खुशी ये लोग कहते है सभी
अपनों से कटरा के फिर क्यों ग़ैर अपनाते है लोग

जिंदगी की राह जो है काटों से मिलकर बनी
काटों पर चलने से फिर क्यों इतना घबराते है लोग

बेवफाई खुद मई हो और दूजे पे इलज़ाम दे
खुद की भी अग्नि-परीक्षा क्यों न करवाते है लोग

 हो ग़ैर की तो आपको फिर क्यों मिले
'सारथी' इतना सा फिर क्यों न समझ पाते है लोग  

Friday, 31 July 2015

'सारथी' को वही आज डसने चले

वो वफ़ा पर मेरे तंज़ कसने चले
घर कहीं था कहीं आज बसने चले

अब ज़माना हँसे है हमें देखकर
वो ज़माने के सग - संग हँसने चले

कोइ रोता रहे उनको परवाह क्या
ज़िन्दगी मई वो अपने बिहसने चले

कल तलक हमसफ़र मेरे दुख के रहे
जो दिखा जाल सोने की फसने चले

उम्र भर जिसको सींचा निधि मानकर
'सारथी' को वही आज डसने चले 



उसने ही 'सारथी' की खुशी छीन ली

दिल में तस्वीर जो थी बसी छीन ली
ख़्वाब इतने दिखा स्वप्न- सी छीन ली

वो लम्हे भुलाये भी भूले नहीं
जिसने मुझसे मेरी उर्वशी छीन ली

जिनके खातिर विवश होक जीता रहा
ज़िंदा रहने की वो बेबसी छीन ली

आज हँसते है वो मेरे हालत पर
जिसने आँखों से मेरी खुशी छीन ली

उम्र भर वो समझता था जिसको निधि
उसने ही 'सारथी' की खुशी छीन ली



'सारथी' फ़र्ज़ पूरा किये जा रहे

आज फिर से अकेले जिए जा रहे
उनके जाने के ग़म को पिए जा रहे

उनके जाने का हमपर असर ये रहा
आसमां फट गया जो सीए जा रहे

इस ज़माने ने हमसे खुशी मांग ली
खुशियाँ ग़ैरों को अपनी दिए जा रहे

खुश रहे हम वो ऐसी दुआ मांगते
खुशियाँ सारी मेरी जो लिए जा रहे

अपनी सारी निधि ग़ैर को सौंपकर
'सारथी' फ़र्ज़ पूरा किये जा रहे


'सारथी' तू भी सिलसिला तो नहीं

तुमसे मिलकर तो मैं मिला भी नहीं
तेरे दिल में कोई गिला तो नहीं

तेरे जाने का है असर ऐसा
दिल किसी और से मिला तो नहीं

हमसे तुम दूर जो हुए इतने
दिल ज़रा भी तेरा हिला तो नहीं

दिल मैं मेरे सिवाय कोई नहीं
दिल तो दिल था कोई किला तो नहीं

इश्क़ ऐसी निधि कभी न मिले
'सारथी' तू भी सिलसिला तो नहीं 

Thursday, 30 July 2015

'सारथी' पर सितम पर सितम हो गये

सारे  सपने यही पर ख़तम हो गये
जबसे वो ग़ैर के प्रियतम हो गये

किस्सा - ए - इश्क़ की अब तो सुनते कहीं
मुस्कराते रहे आँख नम हो गये

 ज़िन्दगी जीने की जो तमन्नाये थी
अब तो जाने लगे क्यों ये कम हो गये

वो जो आये तो थे रौशनी दे गये
उनके जाने से क्यों आज तम हो गये

वो निधि जो चुराकर कोई ले गया
'सारथी' पर सितम पर सितम हो गये


हँसते - हँसते हमें अलविदा कह गये

वो हमारे हर इक हक़ अदा कर गये
अपने दिल से भी हमको जुदा कर गये

हो सके वो हमें भूल जाये मग़र
उनकी यादें हमें गुदगुदा कर गये

उनको आंसू हमारे दिखे भी नही
हँसते - हँसते हमें अलविदा कह गये

दिल लगाया किसी से किसी के हुये
दो दिलो को तो वो ग़मज़दा कर गये

ज़िन्दगी की निधि हो समर्पित उन्हें
'सारथी' को ख़ुदा से जुदा कर गये 

रूठना ख़ुद ही ख़ुद को मनाते रहे

वो न आये मग़र याद आते रहे
थपकियाँ देके जिनको सुलाते रहे 

अब वो जाये कहाँ और किससे कहे
ऐसी मज़बूरियों को जताते रहे 

अब तो कोई मनाने भी आता नही 
रूठना ख़ुद ही ख़ुद को मनाते रहे 

उनपे इलज़ाम तो बेवफाई का है 
ये अलग वो हक़ीक़त बताते रहे  

अपने जीवन की उनको निधि मानिये 
'सारथी' को ही पथ जो दिखाते रहे 

सारथी की विकलता है चाँद

आज भी दिन ढले जब निकलता है चाँद 
आपको देखे न तो सिसकता है चाँद 

आपने है पुकारा यही सोचकर 
चलते - चलते लगे की ठिठकता है चाँद 

आप आये घड़ी दो घड़ी ही सही 
दिल में आशा लगाये निखरता है चाँद 

आप रो देंगे उसको दुखी देखकर 
बस यही सोचकर मुस्कराता है चाँद 

उसकी सारी निधि आप पर ही ख़तम 
सारथी, सारथी की विकलता है चाँद 

यादों में 'सारथी' अब शाम न करे

कोई इश्क़ को जहां में बदनाम न करे
करना है इश्क़ तो फिर नाकाम न करे

राहे बहुत कठिन है चलना संभल - संभल के
ये इश्क़ अब किसी को बेकाम न करे

रूक जाये ठहरे देखे समझ कर कदम रखें
हिम्मत न जिगर मई तो ये काम न करे

उठ जाये न यकीं ज़माने का इश्क़ से
किस्सा - ए - बेवफाई सरेआम न करे

माना जिसे निधि था वो पाला बदल लिये
यादों में 'सारथी' अब शाम न करे

Wednesday, 29 July 2015

'सारथी' के बगैर ग़र संभल सको तो चलो

वफ़ा की राह कठिन है जो चल सको तो चलो 
तमन्ना मौत की पाले मचल सको तो चलो 

दिलो को तोड़ने वाले है ज़माने में बहुत 
ऐसे दुश्मन की नज़र से निकल सको तो चलो 

बेवफाई के है खतरे कदम - कदम पे यहाँ 
अपनी रहो को अगर तुम बदल सको तो चलो 

झूठे वादों से भरी एक फरेब की नगरी 
इन्ही वादों के बदौलत बहाल सको तो चलो

कभी न मानो किसी को अपने जीवन की निधि 
'सारथी' के बगैर ग़र संभल सको तो चलो 

खुद को खुद से कभी जुदा न करे

खुद को खुद से कभी जुदा न करे 
इश्क़ करके ख़ुदा - ख़ुदा न करे 

गो की वो इश्क़ काम फ़रेब ही था 
हँसते - हँसते कोई विदा न करे 

इश्क़ मई आँशु है क़ुबूल हमें 
इश्क़ समझे वो ये ख़ुदा न करे

उनसे बस इतना ही तो माँगा था 
दिल किसी और पर फ़िदा न करे 

थे कभी जो किसी जीवन की निधि 
सारथी को वो अलविदा न करे 

'सारथी' मौसम बदलते ही बदल जाते है वो

जो हमेँ थी नापसंद वो काम अब करते है वो 
हर घड़ी हर बात पे अब दिल दुखा जाते है वो

वादा तो इस उम्र का था जो निभा सकते नही
वो मेरी थी और रहेँगी कह के भरमाते है वो

बेवफ़ाई वो करेँगे ये कभी सोचा न था
ज़िक्र मेरा करने मेँ भी अब तो शरमाते है वो

कल तलक दुख मेँ मेरे घबरा के रो देते थे जो
कोई रोये फ़र्क क्या अब हँस के बतियाते है वो

जो निधि मेरे थे अबतक बात से वो छल गये
'सारथी' मौसम बदलते ही बदल जाते है वो

रुख हवा देखकर अक़सर बदल जाते है लोग

रुख हवा देखकर अक़सर बदल जाते है लोग
कल तलक मिलते थे दिल से आज कतराते है लोग

अपनोँ से मिलती ख़ुशी ये लोग कहते सभी
अपनोँ से क़तरा के फ़िर क्योँ ग़ैर अपनाते है लोग

ज़िँदगी की राह जो है काँटोँ से मिलकर बनी
काँटोँ पर चलने से फिर क्योँ इतना घबराते है लोग

बेवफ़ाई ख़ुद मेँ हो और दूजे को ईल्ज़ाम देँ
ख़ुद की भी अग़्नि-परीक्षा क्योँ न करवाते है लोग

जो निधि हो ग़ैर की तो आपको फ़िर क्योँ मिले
सारथी इतना सा फ़िर क्योँ न समझ पाते है लोग

Thursday, 17 November 2011

मेरा शहर

हैं लोग हर तरह के कहते मेरे शहर में
बदन लौह है दिल मोम रखते मेरे शहर में

हर ओर हरियाली , खुशहाली संग में
सब मिलके बस्तियां बनाते मेरे शहर में

हर कौम से अलग मजहब है हमारा
हैं पाठ प्यार का पढ़ाते मेरे शहर में

हर एक छत के नीचे बस मिलते आदमी
है इन्सान सभी रहते मेरे शहर में

हर एक के लिए है हर एक सारथी
है मिलके बोझ उठाते मेरे शहर में