शाम इतना भी अब हमें नही लुभाती है
याद उनकी न जाये तो ये मुस्कराती है
उनको भूलें भी तो कैसे समझ नही पाता
वो राहें साथ चले जिनपे वो बुलाती है
कितनी रातों से न सोये है ये भी याद नही
उनकी यादें तो अब फ़क़त हमें रुलाती है
दिन के तपते हुए सूरज की बात कौन करे
चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है
अर्ज़ इतनी सी थी रहना हमेशा साथ मेरे
'सारथी' को वो ज़िंदगी से क्यों मिटाती है
याद उनकी न जाये तो ये मुस्कराती है
उनको भूलें भी तो कैसे समझ नही पाता
वो राहें साथ चले जिनपे वो बुलाती है
कितनी रातों से न सोये है ये भी याद नही
उनकी यादें तो अब फ़क़त हमें रुलाती है
दिन के तपते हुए सूरज की बात कौन करे
चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है
अर्ज़ इतनी सी थी रहना हमेशा साथ मेरे
'सारथी' को वो ज़िंदगी से क्यों मिटाती है
No comments:
Post a Comment