वो न आये मग़र याद आते रहे
थपकियाँ देके जिनको सुलाते रहे
अब वो जाये कहाँ और किससे कहे
ऐसी मज़बूरियों को जताते रहे
अब तो कोई मनाने भी आता नही
रूठना ख़ुद ही ख़ुद को मनाते रहे
उनपे इलज़ाम तो बेवफाई का है
ये अलग वो हक़ीक़त बताते रहे
अपने जीवन की उनको निधि मानिये
'सारथी' को ही पथ जो दिखाते रहे
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