वो वफ़ा पर मेरे तंज़ कसने चले
घर कहीं था कहीं आज बसने चले
अब ज़माना हँसे है हमें देखकर
वो ज़माने के सग - संग हँसने चले
कोइ रोता रहे उनको परवाह क्या
ज़िन्दगी मई वो अपने बिहसने चले
कल तलक हमसफ़र मेरे दुख के रहे
जो दिखा जाल सोने की फसने चले
उम्र भर जिसको सींचा निधि मानकर
'सारथी' को वही आज डसने चले
घर कहीं था कहीं आज बसने चले
अब ज़माना हँसे है हमें देखकर
वो ज़माने के सग - संग हँसने चले
कोइ रोता रहे उनको परवाह क्या
ज़िन्दगी मई वो अपने बिहसने चले
कल तलक हमसफ़र मेरे दुख के रहे
जो दिखा जाल सोने की फसने चले
उम्र भर जिसको सींचा निधि मानकर
'सारथी' को वही आज डसने चले
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