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Tuesday 6 September 2011

गज़ल

ग़म नहीं इस बात का कि तुमने हमें भुला दिया
गम रहा तो फ़क़त ये कि हम न तुम्हे भुला सके ।


तुमने बहुत कहा मुझे सुन ली तेरी हर दास्तां
बस तेरी दर्द-ए-जफ़ा किसी को न सुना सके ।


काट ली हर रात यों यादों के तेरे वास्ते
सो गई दुनिया, पर खुद को न हम सुला सके ।


बह गये जज्बात मेरे इस नदी की धार में
इक तेरे गम ही रहा जिसको न हम बहा सकें ।


हिल गया दिल ये मेरा सुनके वफ़ा की राह को
तुम तो वो जमीन हो जिसको न हम हिला सके ।

1 comment:

  1. जज्बात यूँ बहे ना जलती रहे मशाल
    मतला बिना ग़ज़ल की खुशबू खिला सके
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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