उठो देश के नौजवानों ,
आपस में अब लड़ना छोड़ो ,
देखो कोइ लूट रहा है ,
उसे लूटने से अब रोको ।
लूटा करते थे पह्ले भी ,
लेकिन एक मर्यादा थी ,
आते लूट मचाते जाते ,
ना वह घर की पीड़ा थी ।
अब लूट रहे है वही हमें ,
समझे जिसको हम रखवाले ,
भेद करना अब बडा कठिन ,
है कौन हमे समझने वाले ।
लोकतंत्र अब बना है केवल ,
पथ कुर्सी तक जाने को ,
बैठ कुर्सी पर मतलब है ,
लाईसेंस लूट का पाने को ।
अन्न उगाते जी भर के ,
पर जनता दाने को मोहताज ,
सेठ करे अपनी मनमानी ,
गोदामो में भरा अनाज ।
अब जाग – जाग हे! नौजवान ,
ना जा तुम केवल खलिहान ,
है तुम्हे पूछ्ने का अधिकार ,
गया तुम्हारा अन्न कहा ?
भाव जागरण का लिए रचना है दमदार
ReplyDeleteज़रा वर्तनी देख लें होगा सुमन सुधार
सादर
श्यामल सुमन
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