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Tuesday 16 December 2014

सारथी ये भी फ़लसफ़ा तो नहीं

दिल किसी बात पर खफ़ा तो नहीं
कैसे कह दूँ , मैं बेवफ़ा तो नहीं

वो मेरे पास ही तो है, फिर भी
वक़्त की मार ये जफ़ा तो नहीं

भूल जायेंगे हम उन्हें भरसक
यह वफ़ा भी कोई, वफ़ा तो नहीं

इश्क़ में है ही क्यूँ यकीं इतना
इश्क़ से है कोई नफ़ा तो नहीं

इश्क़ तो इश्क़ है कभी ना करें
'सारथी' ये भी फ़लसफ़ा तो नहीं  

Sunday 9 November 2014

इक दिवाली ये भी है

रौशनी बजते पटाखें, इक दिवाली ये भी है 
दिल में फिर भी उदासी, इक दिवाली ये भी है 

जिंदगी की दौड़ में और जीतने की होड़ में
हो गयी घर से ही दूरी, इक दिवाली ये भी है 

जगमगाते दीप भी हैं चकचकाती रौशनी 
फिर भी है दिल में अंधेरा, इक दिवाली ये भी है 

हर तरफ बजते पटाखे मुस्कराते लब लिये 
फिर भी ये कैसी उदासी, इक दिवाली ये भी है 

देख मिट्टी के घरोंदे, याद घर की आ गयी 
अपनों की यादों सहारे, इक दिवाली ये भी है 
 

Tuesday 7 October 2014

कैसी आज़ादी ?

ये कैसी आज़ादी है, ये कैसी आज़ादी ?
जिसमें चलती बस हरे कार्ड की आँधी ,
जिसमें उड़ते देखे जाते लाल कार्ड के धारी,
ये कैसी आज़ादी है, ये कैसी आज़ादी ?

लालकार्डधारी जिसकी नहीं कोई पहचान,
न ही कोई मान है इनका न कोई सम्मान ।
हरे कार्ड की बात न पूछो न मिलता यह दान,
बेचे और ख़रीदे जाते मान और सम्मान ।

ये कैसी आज़ादी जिसमे भुखे मरे किसान ,
नंगे रहे जुलाहे कपडा पहने बेईमान ।
सत्ता के बंटवारे से खुश हुए थे सामंत ,
हार गए थे खुदी, भगत सिंह जीत गया जयचंद ।

भ्रष्टाचार सभी रूपों में दिख रहें है,
लोग देखकर भी इसमें पिस रहें हैं ।
भ्रष्टाचार का फ़ैल रहा है अंधकार-सा हाथ ,
दे रहे नेता सामंत इसका साथ ।

काट खाए वो अँधेरा लग रहा हैं,
विश्व को सुरक्षा का भय हो रहा हैं ।
डर लग रहा इस अराजकता के तम से,
प्राण-प्राण त्रस्त एक अज्ञात भय से ।

अमीर कुबेर हो रहे गरीब हो रहे भिखारी,
महगाई ने कमर तोड़ दी चलती नही है गाड़ी।
कोई भी नही है हो रहा जनवादी,
ये कैसी आज़ादी है,ये कैसी आज़ादी है ?

मनुज ही मनुज को छल रहा है,
मनुष्यों की बस्ती में गद्दार पल रहा है ।
सत्ता के कोठे पर नीलाम होता है लोकतंत्र,
चुपचाप मूकदर्शक बने बैठा ये जनतंत्र ।

अबलाओं का होता है यहाँ पर चीरहरण,
यहाँ लोगों का जीना तो है मरण ।
क्यों इस मुर्दो की बस्ती में जी रहे हो,
क्यों नही जहर अब तलक पी रहे हो ।

आज जननी फिर है तुम्हे बुला रही,
सोने की हथकड़ियों में ये अकुला रही ।
कह रही सामंतो से मुझे आज़ाद कराओ,
कह रही गरीबों से मेरा भाग्य सवारों ।

जननी को बचाना होगा उनके कर्णधारों को,
अपनाना होगा शहीदों के विचारो को ।
विचारों को बना बुद्धि की 'सारथी'
प्रत्यंचा खींच गांडीव की मारो अर्धरथी ।

करो फिर एक नए कुरुक्षेत्र का ऐलान,
करो वह युद्ध जिसमें  हो जनकल्याण ।
भयानक समर के बाद जो पायेगी आबादी,
वही होगी जननी की "सच्ची आज़ादी" ।

Tuesday 11 March 2014

मैंने देखा है।

मैंने देखा है, कई बच्चों को,
उन्हें भी जो चाकलेटी दुनिया में भटकते हैं,
उन्हें भी जो दानें-दानें को तरसते हैं,
मैंने देखा है।

मैंने देखा है, उन बच्चों को,
जो पढ़ने पाठालय जाते हैं,
उन्हें भी जो कमाने को सताये जाते हैं ,
मैंने देखा है।

मैंने देखा है, उन बच्चों को,
जो कभी ज़िद पर खाना खाते है,
उन्हें भी जो खाना देख ललचाते है,
मैंने देखा है।

मैंने देखा है, उन बच्चों को,
जो इठलाने को रोते हैं,
उन्हें भी जो आंसू को रोते हैं,
मैंने देखा है।

मैंने देखा है, उन बच्चों को,
जो दुध  से रोते हैं,
उन्हें भी जो दुध को रोते हैं,
मैंने देखा है।

 मैंने देखा है, कई आँखों में,
कोई खुशी के आंसू लिए रोते हैं,
कोई ग़म और कसक लिए सोते है
मैंने देखा है, क्या आपने भी ………। 

Friday 7 February 2014

'सारथी' ने मोहब्बत की इबादत यों करी समझो

तेरी ज़ुल्फो के नीचे ही मेरी हर शाम हो जाये
जरा पलके उठा दो तुम ज़ाम पे ज़ाम हो जाये 

रहेंगे हम तेरे आशिक़, क़यामत के दिनों तक भी 
रहा न डर हमें अब तो भले बदनाम हो जाये 

मिटा दो सरहदें  दिल की ,गिरा दो हर दीवारे अब 
करो कुछ यों मोहब्बत कि मोहब्बत आम हो जाये 

बहुत कर ली दग़ा तुमने , बहुत सह ली ज़फ़ा हमने 
अग़र हम भूले तुमको तो खुद ही ग़ुमनाम हो जाये 

'सारथी' ने मोहब्बत की इबादत यों करी समझो 
वफ़ा कर ले अग़र कोइ तो वो नीलाम हो जाये 

Saturday 1 February 2014

'सारथी' इश्क़ को जो दग़ा कह गया

आज फिर दर्दे दिल कि दवा कर गया
मेरे मरने कि फिर से दुआ कर गया

आग बुझ जो गई थी मोहब्बत के यार
आ के कोई उसे फिर हवा कर गया

जो बहाये थे आंसू जफ़ा के कभी
दर्द दिल का ही, दिल से वफ़ा कर गया

जो भी चलता है रहे मोहब्बत के यार
खुद ही खुद से खुद ही को दफ़ा कर गया

याद रक्खे ज़माना भी इस नाम से
'सारथी' इश्क़ को जो दग़ा कह गया