Followers

Sunday, 4 September 2011

रहें कैसै ?


चाह कर के भी हम तुम्हें चाहें कैसे,
तुम्हीं को दिल दिया ये तुमसे कहें कैसे ?

दर्द-ए-जुदाई, गम मिले तो पी गए,
बदनामियाँ जफा की मगर सहें कैसे ?

हमने तुमको कह दिया दिल में रहेंगे,
अब तुम्हारे बिन हम कहो रहें कैसे ?

जिन्दगी चलने को उकसाती रही,
बिन तुम्हारे इक भी कदम चलें कैसे ?

अब अकेले चलने की हिम्मत नहीं,
पग रोकना भी चाहे  तो रुकें कैसे ?

जब जब तेरी बेबसी सामने आती,
उन आंसुओं के बीच हम हँसें कैसे

कह दिया तेरी जरूरत अब नहीं,
सारथी बिन रथ भला चले कैसै ?

No comments:

Post a Comment