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Sunday, 4 September 2011

अपना नहीं होता ......

मत कहो हर बात कोई अपना नहीँ होता
झुठे हैँ जज्बात  कोई अपना नहीँ होता ।

देखा न करो ख्वाब खुली आँखोँ से
सच कहीँ कोई कभी सपना नहीँ होता ।

जिँदगी बढती ही रहती हर घड़ी
इक मोड़ पे रुकना कोई रुकना नहीँ होता

मत सोच तुमसे छोटा है कोई कहीँ
झुक के मिलना भी कभी झुकना नहीँ होता ।

कुछ बात समझ लिजैँ इशारोँ से भी
हर बात जुबां से कहेँ कहना नहीँ होता ।

जिँदगी कहती है चलते रहने को
पर राह से हटके कोई चलना नहीँ होता ।

हैँ दूरियाँ एक छत के नीचे रहके भी
दिल से दुर रहके कोई रहना नहीँ होता ।

तुम दूर मुझसे इतना जो होते नहीँ
चाँद को पाने को मचलना नहीँ होता ।

सारथी चलता ले रथी को साथ मेँ
थक के रुकना भी कभी थकना नहीँ होता ।

3 comments:

  1. अच्छा लिख रहे हो दोस्त ! लिखते रहॊ !

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  2. पर राह से हटके कोई चलना नहीँ होता


    यह पंक्ति कुछ समझ नहीं आयी.

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  3. भाई , उसका मतलब है कि गलत राह पर चलने को कोई चलना नहीँ होता, चलना तो अच्छे राह पर होता है ना ?े को कोई चलना नहीँ होता, चलना तो अच्छे राह पर होता है ना ?

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