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Thursday, 27 September 2012

जबसे तुने मुझे किया तन्हा

जबसे तुने मुझे किया तन्हा ,
मर के हरपल को मै जिया तन्हा

गो की दिल पर हुए थे जख्म बड़े ,
दिल के जख्मों को फिर सिया तन्हा

वक़्त रोने के जब कोई कांधा न मिला ,
सबसे छुप करके रो दिया तन्हा

कैसे कर लूं किसी पे फिर से यकीं ,
जबकि तुमने मुझे किया तन्हा

यु तो सच है की मैं नही पीता,
तुने दी गम तो पी लिया तन्हा

Monday, 24 September 2012

वो लड़की मुझे दिवानी लगे है

उसकी आँखों में कोई कहानी लगे है ,
वो लड़की मुझे तो दिवानी लगे है .

जब भी मिलती मुझे, कैसी लगती कहूँ
लव पे मुस्कान आँखों में पानी लगे है

यू ही खामोश रहना, झुकाकर नज़र
उसकी ख़ामोशी कोई कहानी लगे है

उस से मिलना भले इत्तेफाकन सही
पर खुदा की कोई मेहरबानी लगे है

करती मुझको परेशां घड़ी, हर घड़ी
फिर भी मुझको मेरी जिंदगानी लगे है

Friday, 20 April 2012

बदलाव

क्योँ जुड़ जाती है जिँदगी ?
किसी के मुस्कान से इस तरह ,
कि लगने लगती है हर चीज ,
बेजान उस मुस्कान के बगैर ।
क्योँ उसे गौर नहीँ करने पर भी ?
अपनी हजार खुशियाँ न्यौछावर है ,
उसकी एक हँसी के लिए ।
क्या हो जाता है हमेँ ?
उसे उदास देखकर ।
क्योँ भर जाती है आँखे ?
उससे बिछड़ने की कल्पना भर से ,
पर दूर तो होना ही था , सो हो लिए ।
इस उम्मीद के साथ कि ,
वो याद रक्खेगी हमेँ ,
बतायेगी अपने सारे राज ,
पहले की तरह ।
खोल कर रख देगी अपनी जिँदगी
के सारे पन्ने ,
काश ! ऐसा ही होता
तो मैँ न घबराता , न पाता ,
खुद को इतना अकेले ।
पर क्या करूँ ?
तन्हा था , तन्हा हूँ
और तन्हा ही रहूँगा
उसकी याद के साथ ..........!

जब भी तन्हा हुए तो आप याद आने लगे,

जब भी तन्हा हुए तो आप याद आने लगे,
भीड़ से किसलिये हम आपको छुपाने लगे.

आपने तो हमेँ हरवक्त बस रूलाया है,
फिर भी नाम सुनके आपका क्योँ मुस्कराने लगे.

हमने की लाख कोशिशेँ रूठ जाने की,
खुद ही खुद को क्यो इस कदर मनाने लगे.

यकीँ है आप ना भुल पायेँगे हमेँ,
करीब होके भी दूरियाँ क्योँ जताने लगे.

चल ही लेता गर नहीँ भी मिलते,
सारथी को राह क्योँ दिखाने लगे.

Tuesday, 10 January 2012

कब तक तेरी जुदाई, सहता रहूंगा मैं

कब तक तेरी जुदाई, सहता रहूंगा मैं
रो - रो के कबतलक यूँ, फिरता रहूंगा मैं

क्यों सोचती नहीं तू, हालात एक बार
तेरे बगैर मुश्किल, चलता रहूंगा मैं

है तय जो रास्ता मेरा, मुड़ता बहुत मगर
यूं कबतलक हर मोड़ पे, मुड़ता रहूंगा मैं

पाता हूं आबरू को, सितमगर की कोख में
कब तक यहाँ सितम भी, सहता रहूंगा मैं

रहबर ही लूटते हैं , रहजन के भेष में
ये खेल है सियासी, कहता रहूंगा मैं

दिल में चाहत थी कभी, बन जाऊं मैं भी सारथी
है खौफ सियासत में, पिसता रहूंगा मैं