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Tuesday, 4 October 2011

कश्मकश

मैँ तुम्हेँ याद नहीँ करता
नहीँ चाहता तुम्हे याद करना
पर क्या करूँ ?
हर बार घूम जाता है तेरा चेहरा
मेरे ऑखोँ के सामने ।

मैँ चाहता हूँ तुम्हेँ भुलना
पर क्या करूँ ?
फोन की हर एक घंटी मेँ
तेरे होने का एहसास होता है ।

क्योँ उदास हो जाता है मेरा मन
फोन पर तुझे न पाकर
कभी तुम तो नहीँ सोचते मुझे
फिर मैँ क्योँ सोचता हूँ तेरे बारे मेँ

नहीँ चाहता तुम मेरी सोच मेँ आओ
यही सोच होता हूँ परेशान
कि कैसे न आओ
तुम मेरी सोच मेँ ।

हर बार सोचता हूँ नहीँ सोचूंगा
तेरे बारे मेँ अबके बाद
पर तुम्हेँ ही पाता हूँ , हर सोच से पहले , हर सोच के बाद .........।

2 comments:

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  2. सोच रहे हैं क्या लिखे
    हम आप की तारीफ़ में
    जब जब सोचते हैं
    तो ख्याल आता है
    "कि कैसे न आओ
    तुम म्रेरी सोच में" ।

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