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Saturday, 1 February 2014

'सारथी' इश्क़ को जो दग़ा कह गया

आज फिर दर्दे दिल कि दवा कर गया
मेरे मरने कि फिर से दुआ कर गया

आग बुझ जो गई थी मोहब्बत के यार
आ के कोई उसे फिर हवा कर गया

जो बहाये थे आंसू जफ़ा के कभी
दर्द दिल का ही, दिल से वफ़ा कर गया

जो भी चलता है रहे मोहब्बत के यार
खुद ही खुद से खुद ही को दफ़ा कर गया

याद रक्खे ज़माना भी इस नाम से
'सारथी' इश्क़ को जो दग़ा कह गया    

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