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Thursday 14 March 2019

ऐसा नहीं की हमने चाहत नहीं की है

ऐसा नहीं की हमने चाहत नहीं की है
हां सच है किसी की कभी आदत नहीं की है 

ये गुमां हमें होता रहा बरसो मैं क्या कहूँ 
सच ये भी है किसी से अदावत नहीं की है 

है चाँद जो रहे तो रहे अपनी जगह पे 
जो भी मिला नशीब में, खयानत नहीं की है

है आरज़ू मुझे तेरी, कैसे कहूँ भला  
मैंने कभी भी खुल के वज़ाहत नहीं की है 

तेरी बात, मुस्कराहट, ये शोख़ी, बांकपन 
वरना कभी किसी पे हैरत नहीं की है 

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