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Sunday 9 November 2014

इक दिवाली ये भी है

रौशनी बजते पटाखें, इक दिवाली ये भी है 
दिल में फिर भी उदासी, इक दिवाली ये भी है 

जिंदगी की दौड़ में और जीतने की होड़ में
हो गयी घर से ही दूरी, इक दिवाली ये भी है 

जगमगाते दीप भी हैं चकचकाती रौशनी 
फिर भी है दिल में अंधेरा, इक दिवाली ये भी है 

हर तरफ बजते पटाखे मुस्कराते लब लिये 
फिर भी ये कैसी उदासी, इक दिवाली ये भी है 

देख मिट्टी के घरोंदे, याद घर की आ गयी 
अपनों की यादों सहारे, इक दिवाली ये भी है 
 

2 comments:

  1. बहुत लाजवाब ग़ज़ल .. दिल को छूते हुवे शेर हैं सभी ...

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर हौसला बढ़ाने के लिये ..........

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