क्योँ जुड़ जाती है जिँदगी ?
किसी के मुस्कान से इस तरह ,
कि लगने लगती है हर चीज ,
बेजान उस मुस्कान के बगैर ।
क्योँ उसे गौर नहीँ करने पर भी ?
अपनी हजार खुशियाँ न्यौछावर है ,
उसकी एक हँसी के लिए ।
क्या हो जाता है हमेँ ?
उसे उदास देखकर ।
क्योँ भर जाती है आँखे ?
उससे बिछड़ने की कल्पना भर से ,
पर दूर तो होना ही था , सो हो लिए ।
इस उम्मीद के साथ कि ,
वो याद रक्खेगी हमेँ ,
बतायेगी अपने सारे राज ,
पहले की तरह ।
खोल कर रख देगी अपनी जिँदगी
के सारे पन्ने ,
काश ! ऐसा ही होता
तो मैँ न घबराता , न पाता ,
खुद को इतना अकेले ।
पर क्या करूँ ?
तन्हा था , तन्हा हूँ
और तन्हा ही रहूँगा
उसकी याद के साथ ..........!
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Friday, 20 April 2012
जब भी तन्हा हुए तो आप याद आने लगे,
जब भी तन्हा हुए तो आप याद आने लगे,
भीड़ से किसलिये हम आपको छुपाने लगे.
आपने तो हमेँ हरवक्त बस रूलाया है,
फिर भी नाम सुनके आपका क्योँ मुस्कराने लगे.
हमने की लाख कोशिशेँ रूठ जाने की,
खुद ही खुद को क्यो इस कदर मनाने लगे.
यकीँ है आप ना भुल पायेँगे हमेँ,
करीब होके भी दूरियाँ क्योँ जताने लगे.
चल ही लेता गर नहीँ भी मिलते,
सारथी को राह क्योँ दिखाने लगे.
भीड़ से किसलिये हम आपको छुपाने लगे.
आपने तो हमेँ हरवक्त बस रूलाया है,
फिर भी नाम सुनके आपका क्योँ मुस्कराने लगे.
हमने की लाख कोशिशेँ रूठ जाने की,
खुद ही खुद को क्यो इस कदर मनाने लगे.
यकीँ है आप ना भुल पायेँगे हमेँ,
करीब होके भी दूरियाँ क्योँ जताने लगे.
चल ही लेता गर नहीँ भी मिलते,
सारथी को राह क्योँ दिखाने लगे.
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