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Tuesday, 23 August 2016

दिल में खंज़र न चुभाना की तेरा नाम भी है

हो रही सुबहा कहीं पर तो कहीं शाम भी है
इतनी थोड़ी सी पिलायेगा या इंतेज़ाम भी है

अपनी यादो से कहो और न सताए हमें
काम करने दो हमें और बहुत काम भी है

ज़ख्म दे दो जो कही पे तो शिकायत न करुं
दिल में खंज़र न चुभाना की तेरा नाम भी है

अब तो बातें न बना और हमें इतना बता
सिर्फ साकी है यहाँ पर या कोई ज़ाम भी है

वक़्त बेवक़्त मुझे यूँ ही बुलाया न करो
सारथी के तो बहुत से यहाँ निज़ाम भी है 

Sunday, 20 March 2016

चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है

शाम इतना भी अब हमें नही लुभाती है 
याद उनकी न जाये तो ये मुस्कराती है 

उनको भूलें भी तो कैसे समझ नही पाता 
वो राहें साथ चले जिनपे वो बुलाती है 

कितनी रातों से न सोये है ये भी याद नही 
उनकी यादें तो अब फ़क़त हमें रुलाती है 

दिन के तपते हुए सूरज की बात कौन करे 
चाँदनी रातें भी अब तो हमें जलाती है  

अर्ज़ इतनी सी थी रहना हमेशा साथ मेरे 
'सारथी' को वो ज़िंदगी से क्यों मिटाती है