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Wednesday, 30 September 2015

इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

अब तो रुखसार पे उनके नक़ाब सा क्यों है
इश्क़ में ए- मेरे- मौला हिसाब सा क्यों है

वो जो बस बेवफ़ा की ज़ात से थे
ज़िन्दगी उनके बिन लगे ख़राब सा क्यों है

जिनको चाहे तमाम उम्र कटी
अब वो यादों से भी जायेंगे ख़्वाब सा क्यों है

उसने गलती नहीं गुनाह किया
फिर भी आँखों में जो देखा जबाब सा क्यों है

इश्क़ की खोखली निधि जो हुये
'सारथी' चेहरे पे उनके रुआब सा क्यों है 




'सारथी' को हमेशा लुभाते रहे

वो हमें देख कर मुस्कराते रहे
अपनी पलकें गिराकर उठाते रहे

प्यार उनको भी है ये यकीं है हमें
वो छुपाते रहे, हम जताते रहे

उनकी आँखे जो गहरा समंदर लगे
वो चुराते रहे, फिर मिलते रहे

हुश्न की शोख़िया भी गज़ब देखिये
हम जो लिखते रहे वो मिटाते रहे

जिनको देखे बिना चैन आये नहीं
'सारथी' को हमेशा लुभाते रहे  

नयन कैसे हो गए मेरे सज़ल हमने लिखा

उनकी यादो में सारे ग़ज़ल हमने लिखा
लब की उदासी, दिल विकल हमने लिखा 

जब भी कोई पूछता क्या इश्क़ तुमने भी किया 
नयन कैसे हो गए मेरे सज़ल हमने लिखा 

जिनकी खातिर ज़िन्दगी में हर खुशी क़ुर्बान की 
बेवफाई की वो कैसे की पहल हमने लिखा 

न तो लफ़्फ़ाज़ी लिखी न शौक से हमने लिखा 
जो थे बीते ज़िन्दगी में आजकल हमने लिखा 

एक उम्र तक बाँहों को मेरे जो समझता था निधि 
'सारथी' को छोड़ भाये अब महल हमने लिखा